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बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान

4

 

श्वसन तंत्र

 

(Respiratory System)

 

प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।

अथवा
श्वसन की प्रक्रिया को समझाते हुए इसमें भाग लेने वाले विभिन्न अंगों का वर्णन कीजिए।
अथवा
श्वसन तन्त्र का चित्र बनाकर विस्तारपूर्वक समझाइये।
लघु प्रश्न
1. श्वसन तन्त्र को समझाइए।
2. श्वसन तन्त्र के लाभ या उपयोगिता बताइए।
3. फेफड़ों के कार्य तथा फेफड़ों में O2 तथा CO2 गैसों के आदान-प्रदान के बारे में बताइए।
4. अभिश्वसन (inspiration) तथा निःश्वसन (expiration) के बारे में बताइए।
5. श्वसन की प्रक्रिया पर टिप्पणी लिखिए।
6. श्वसन क्रिया में भाग लेने वाले अंगों को चित्र द्वारा दर्शाइये।
7. श्वसन क्रिया समझाइए।

उत्तर -

श्वसन तन्त्र
(Respiratory System)

श्वसन तन्त्र से तात्पर्य उन सभी अंगों तथा उनकी भौतिक व रासायनिक क्रियाओं से है जिसके द्वारा एक जीवित प्राणी ऑक्सीजन (शुद्ध वायु) ग्रहण करता है तथा कार्बनडाईऑक्साइड (अशुद्ध वायु) त्यागता है।

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श्वसन क्रिया जीवन के अस्तित्व के लिए आवश्यक क्रिया है। प्रत्येक जीवधारी का जीवन ऑक्सीजन पर निर्भर करता है। यदि चार मिनट से अधिक समय के लिए शरीर को ऑक्सीजन न मिले तो मस्तिष्क चेतना शून्य हो सकता है। यदि कोई बच्चा खेलते समय पॉलीथिन के थैले से मुँह बन्द कर ले और उससे निकल न पाए तो ऑक्सीजन न मिल पाने से मृत्यु भी हो सकती है। वे व्यक्ति जो तंग और सीमित स्थानों में काम करते हैं जैसे टैंक, खान आदि यदि उनको निरन्तर ऑक्सीजन तथा ताजी हवा सप्लाई नहीं की जाती है तो उनकी मृत्यु हो जाती है। इस दशा में अल्प-ऑक्सीजन रक्तता (hypoxia) कहते हैं। अतः श्वसन क्रिया एक अति आवश्यक क्रिया है।

श्वास क्रिया द्वारा शरीर की प्रत्येक कोशिका ऑक्सीजन ग्रहण करती है जिसके द्वारा आहार के रूप में लिए गए पौष्टिक तत्वों का ऑक्सीकरण होता है और शारीरिक क्रियाओं के संचालन के लिए ऊर्जा व ताप विमुक्त होता है। ऑक्सीकरण क्रिया के बाद जो व्यर्थ पदार्थ (कार्बन-डाइऑक्साइड) बनाते हैं वे भी श्वास क्रिया द्वारा ही बाहर निकाले जाते हैं।

जब रक्त में ऑक्सीजन की कमी होती है तो रक्त का रंग लाल की अपेक्षा नीला होने लगता है जिससे व्यक्ति के होंठ और त्वचा नीली पड़ने लगती है अतः निरन्तर ऑक्सीजन आपूर्ति के लिए कमरों में उचित संवाहन का होना आवश्यक है। विशेष रूप में उन स्थानों पर जहाँ व्यक्ति सामूहिक रूप से बैठते हैं. जैसे स्कूल, ऑफिस, कारखाने, सिनेमाघर आदि।

श्वसन शरीर की महत्वपूर्ण क्रिया है। प्रत्येक प्राणी को जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है जो उसे वातावरण से प्राप्त होती है। मनुष्य एक मिनट में 18 बार सांस लेता है। एक बार वायु को अन्दर खींचना व बाहर निकालने की क्रिया को निःश्वसन या उच्छुश्वसन कहते हैं। शरीर के ऊतकों को सभी प्रकार की क्रियाओं को करने के लिए ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। कोशिकाओं में सभी तत्वों का चयापचय व उनसे ऊर्जा की प्राप्ति ऑक्सीजन के द्वारा ही होती है। श्वसन क्रिया के अन्तर्गत ऑक्सीजन को बाह्य वातावरण से ग्रहण किया जाता है तथा CO2 को बाहर निकाला जाता है। इस प्रकार श्वसन में दोनों क्रियाओं में गैसों का आदान-प्रदान होता है।

श्वसन क्रिया में गैसों के विनिमय की दो अवस्थाएँ होती हैं-

1. बाह्य श्वसन - यह श्वसन क्रिया फुफ्फुस में सम्पादित होती है। इस क्रिया में चार प्रक्रियाओं का सम्पादन होता है .

(i) प्रश्वसन द्वारा वातावरण की शुद्ध वायु को नासिका द्वारा अन्दर ग्रहण करना तथा उसे वायु कोष्ठिका कोषों में भेजकर अन्दर की अशुद्ध वायु को बाहरी वायु से प्रतिस्थापित कर ऑक्सीजन पहुँचाना तथा उच्छश्वसन की क्रिया द्वारा वायुकोषों से प्राप्त CO2 को वापस नासिका द्वारा बाहर छोड़ना।

(ii) हृदय से अशुद्ध रक्त का फुफ्फसों तक पहुँचना तथा रक्त कोशिकाओं द्वारा प्रत्येक वायुकोष्ठ पर फैलना।

(iii) वायु प्रवाह तथा रक्त प्रवाह का सभी भागों में सामान वितरण होना।

(iv) विसरण की क्रिया द्वारा वायुकोष्ठिका कोषों की भित्तियों तथा रक्त कोशिकाओं की कोशाकला के मध्य ऑक्सीजन व CO2 का विनिमय।

2. अन्तः श्वसन - यह श्वसन क्रिया ऊतकों में सम्पन्न होती है। इसके अन्तर्गत निम्न क्रियाएँ होती हैं -

(i) शुद्ध रक्त के द्वारा 02 का ऊतकों तक संवहन।

(ii) ऊतक की कोशिकाओं द्वारा रक्त कोशिकाओं में 2 ग्रहण करना व CO2 को वापस रक्त में पहुँचाना।

पहुँचाना।

(iii) रक्त कोशिकाओं द्वारा शिराओं तथा फिर महाशिरा द्वारा अशुद्ध रक्त को हृदय तक

अन्तःश्वसन तथा बाह्य श्वसन अलग-अलग क्रियायें हैं, परन्तु इनका क्रम एक-दूसरे पर निर्भर है। बाह्य श्वसन के बाद ही अन्तःश्वसन होता है तथा अन्तःश्वसन के बाद बाह्य श्वसन क्रिया सम्पन्न होती है।

श्वसन क्रिया का महत्व व उपयोगिता

1. मानव जीवन के अस्तित्व को बनाए रखना श्वसन क्रिया मानव जीवन के लिए अंति आवश्यक व जीवनदायिनी क्रिया है। जल व भोजन के अभाव में तो व्यक्ति कुछ दिन तक जीवित रह सकता है किन्तु ऑक्सीजन के अभाव में कुछ क्षण जीवित रहना असम्भव होता है। अतः श्वसन क्रिया द्वारा निरन्तर ऑक्सीजन प्राप्त होती रहती है और मानव जीवन बना रहता है।

2. कोशिकाओं में ऑक्सीजन आपूर्ति करना मानव शरीर की निर्माणक इकाइयाँ कोशिकाएं जीवित इकाइयां हैं। ये भी मनुष्य की तरह भोजन ग्रहण करती हैं, गति करती हैं, जनन करती हैं और साँस लेती हैं अतः इन्हें भी ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है। अतः श्वसन क्रिया से कोशिकाओं को भी निरन्तर ऑक्सीजन मिलती रहती है।

3. व्यर्थ पदार्थों को शरीर से निष्कासित करना प्रत्येक प्राणी निरन्तर क्रियाशील रहता है जागते समय ही नहीं सोते समय भी उसके अनेक अंग क्रियाशील रहते हैं जिससे शरीर की ऊर्जा नष्ट होती रहती है। आहार के रूप में लिए गए पौष्टिक तत्वों (प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा) का शरीर में ऑक्सीकरण श्वांस द्वारा ली गई ऑक्सीजन की सहायता से होता है। इस क्रिया से ऊर्जा व ताप उत्पन्न होता है तथा कुछ व्यर्थ पदार्थ जिनमें कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा सर्वाधिक होती है। यह गैस विषैली होती है। शरीर में इसका निष्कासन आवश्यक होता है। श्वसन क्रिया में निःश्वसन क्रिया के दौरान कार्बन डाईऑक्साइड विसर्जित की जाती है।

श्वसन तन्त्र के अंग श्वसन तन्त्र के अन्तर्गत वे सभी अंग आते हैं जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से श्वसन क्रिया में सहायता प्रदान करते हैं। ये अंग निम्नलिखित हैं-

1. नाक ( Nose),

2. ग्रसनी (Pharynx),

3. स्वरयन्त्र (Larynx),

4. श्वासनली (Trachea),

5. श्वासनियाँ (Bronchi),

6. फेफड़े (Lungs)।

मध्यपट ( diaphragm) और पसलियों के बीच की पेशियाँ अन्तरापाशुक पेशियाँ (inter- costal muscles) भी श्वसन क्रिया में सहायक होती हैं।

नाक (Nose) शरीर में वायु का प्रवेश नाक से ही होता है। नाक में सामने की ओर दो छिद्र दिखाई देते हैं जिसे नासिका रन्ध्र ( nostrill or nosal chambers) कहते हैं। दोनों नासिका रन्ध्र कार्टिलेज की बनी एक लम्बी पट्टी से दो भागों में विभक्त रहते हैं जिसे नासिका गुहाएँ कहते हैं। नासिका रन्ध्र के आन्तरिक भाग में श्लैष्मिक झिल्ली होती है जिसमें असंख्य रक्त वाहिनियाँ होती हैं तथा बाल होते हैं। इन बालों के कारण ही वायु छनती हुई अन्दर जाती है। धूल आदि के कण इन बालों में अटककर बाहर ही रह जाते हैं। नासिका रन्ध्र की रक्त कोशिकाओं की गर्मी के कारण वायुमण्डलीय हवा की ठण्डक कम हो जाती है जिससे अन्दर प्रवेश करने वाली वायु का तापमान शरीर के तापमान के समान हो जाता है।

नाक के श्लैष्मिक झिल्ली से एक तरल चिपचिपा पदार्थ निकलता रहता है जो जीवाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखता है। यदि वायु के साथ हानिकारक जीवाणु अन्दर प्रवेश करते हैं तो वे बाहर ही इस तरल पदार्थ द्वारा नष्ट कर दिए जाते हैं। इसके अतिरिक्त यदि वायु शुष्क होती है तो इस तरल पदार्थ के सम्पर्क में आने पर नम हो जाती है। नाक में संवेदी कोशिकाएँ होती हैं जो किसी वस्तु की गन्ध का ज्ञान प्राप्त कराती है। इसलिए नाक एक ज्ञानेन्द्रिय भी है। नासिका गुहाओं में अन्दर की ओर नन्हें-नन्हें रिक्त होते हैं जिसे साइनस कहते हैं। ये साइनस भी श्लैष्मिक झिल्ली से ढके रहते हैं। जुकाम की स्थिति में साइनस की श्लैष्मिक झिल्ली सूज जाती है, अधिक संक्रमण होने पर पीड़ा होने लगती है। इस रोग को साइनोसाइटिस कहते हैं।

ग्रासनली तथा स्वर यंत्र (Pharynx and Larynx) नासिका रन्ध्र थोड़ा अन्दर जाकर ग्रसनी में खुलते हैं। ग्रसनी कीप के आकार की संरचना है जो थोड़ा आगे बढ़कर दो भागों में विभक्त हो जाती है।

1. स्वरयन्त्र - जिसमें वायु प्रवेश करती है।

2. ग्रासनली - जिससे भोजन आमाशय तक पहुँचता है।

स्वरयन्त्र के ऊपर कार्टिलेज का बना एक ढक्कन होता है जिसे 'एपीग्लोटिस' (epiglottis) कहते हैं जो भोजन के निगलते समय स्वतः ही बन्द हो जाता है और भोजन श्वासनली में नहीं आता है। स्वरयन्त्र श्वास नली के ऊपर स्थित होता है। इसकी दीवारें कार्टिलेज की बनी होती हैं। सबसे ऊपर 'c' के आकार का चौड़ा उभरा हुआ छल्ला होता है जिसे 'थॉयराइड (thyroid) कहते हैं। थॉइराइड के ऊपर ही एपीग्लोटिस होता है। थाइराइड के पीछे छल्लेनुमा संरचना होती है जिसे cricoid कहते हैं। इन दोनों छल्लों के मध्य कुछ रिक्त स्थान होता है जिसे 'कण्ठ कक्ष' (laryngeal chamber) कहते हैं। इसमें ही 'स्वररज्जु' (vocal cords) होते हैं जब कंठहार या एपीग्लोटिस से वायु गुजरती है तो स्वररज्जुओं में कम्पन होता है जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है।

श्वासनली (Trachea) श्वांसनली स्वरयन्त्र से जुड़ी हुई 11-12 सेमी लम्बी सीधी नलिका है जो कार्टिलेज में अधूरे छल्लों से बनी होती है। ये छल्ले पीछे की ओर खुलते हैं और '2' के आकार के होते हैं। श्वासनली के आन्तरिक भाग में श्लैष्मिक झिल्ली होती है जिसमें से तरल पदार्थ निकलता रहता है। यह तरल पदार्थ कई महत्वपूर्ण कार्य करता है जैसे नासिका रन्धों से जो धूल कण या जीवाणु बचकर श्वास नलिका में प्रवेश करते हैं उन्हें नष्ट कर देता है तथा वायु का शुद्धिकरण करता है। श्लैष्मिक झिल्ली में बालों के समान छोटी-छोटी उभारदार संरचनाएँ होती हैं जिन्हें रोमक ( villi) कहते हैं। ये निरन्तर हिलते रहते हैं जिससे धूलकण व जीवाणु आदि अन्दर नहीं जाने पाते हैं।

श्वासनली आगे की ओर जाकर दो भागों में विभक्त हो जाती है जिन्हें श्वासनियाँ कहते हैं। ये दोनों श्वासनियाँ दोनों फेफड़ों में प्रवेश करती हैं और अनेक शाखाओं व उपशाखाओं में वृक्ष की शाखाओं की भाँति फैल जाती हैं अन्त में ये अत्यन्त बारीक हो जाती हैं जिन्हें वायु प्रणालियाँ कहते हैं। .

फेफड़े (Lungs) - फेफड़े वक्षस्थल में पसलियों के पिंजरे में दोनों ओर स्थित रहते हैं। ये स्पंजी होते हैं तथा हृदय को छोड़कर समस्त वक्षस्थल को घेरे रहते हैं। फेफड़ों के ऊपर चिकनी, कोमल और गुलाबी रंग की दोहरी पर्त चढ़ी रहती है जिसे फुफ्फुसावरण ( pleura) कहते हैं। ऊपरी पर्त पसलियों से लगी रहती है तथा आन्तरिक पर्त फेफड़ों की बाहरी सतह से चिपकी रहती है। फुफ्फुसावरण


की दोनों पर्ते एक-दूसरे के सम्पर्क में रहती हैं। दोनों पर्तों के बीच में एक तरल पदार्थ भरा होता है जो श्वास लेते समय फेफड़ों के फूलने पर अन्य अंगों की रगड़ से बचाता है। जब ये तरल पदार्थ अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाता है तो उसे प्लूरिसी (pleurisy) रोग कहा जाता है।

प्रत्येक फेफड़ा कई भागों में बंटा होता है जिसे खण्ड कहते हैं। बाएँ फेफड़े में दो खण्ड तथा दाएँ में तीन खण्ड होते हैं। प्रत्येक खण्ड पुनः छोटे-छोटे भागों में विभक्त रहता है जिन्हें खण्डिकाएँ कहते हैं। अन्त में ये खण्ड सूक्ष्मतम होते हुए चिकनी झिल्ली के रूप में रह जाते हैं जिन्हें वायुकोष कहते हैं। वायुकोष छोटी-छोटी थैलियों के आकार के होते हैं। उच्छवास क्रिया के दौरान जब इसमें वायु भर जाती है तो ये अंगूर के गुच्छों के समान दिखाई देते हैं अतः वायुकोषों का समूह ही फेफड़े हैं। श्वास नलिका की शाखाएँ इन वायुकोषों में घुसी रहती है। फेफड़ों में रक्त कोशिकाएँ की दीवारें इतनी पतली होती हैं कि ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान आसानी से हो जाता है। वायु कोषों से ऑक्सीजन निकलकर रक्त में प्रवेश करती है और रक्त से कार्बन डाइऑक्साइड निकलकर वायुकोषों में पहुँचती है जो श्वसन क्रिया के दौरान त्याग दी जाती है।

फेफड़ों के कार्य तथा फेफड़ों में ऑक्सीजन तथा कार्बन डाइऑक्साइड गैसों का आदान-प्रदान - श्वास क्रिया द्वारा ग्रहण की गई ऑक्सीजन फेफड़ों में पहुँचती है जिससे वायुकोष फैल जाते हैं। फेफड़ों में ही फुफ्फुसीय धमनी हृदय के दाहिने निलय से अशुद्ध रक्त लेकर फेफड़ों में पहुँचाती है और अनेक शाखाओं तथा उपशाखाओं में विभक्त होकर वायुकोषों के अन्दर घुस जाती है। रक्त कोशिकाओं की दीवारें अत्यन्त पतली होती हैं। रक्त कोशिकाओं के रक्त में पाए जाने वाले लाल रक्त कणों ( R. B. C.) का हीमोग्लोबिन वायुकोषों से ऑक्सीजन ग्रहण कर लेता है और कार्बनडाइऑक्साइड वायुकोषों में त्याग देता है। ऑक्सीजन हीमोग्लोबिन के साथ मिलकर ऑक्सी- हीमोग्लोबिन बनाती है और इस रूप में लाल रक्त कणों के साथ शरीर के विभिन्न अंगों में लायी जाती है। वायुकोषों द्वारा ग्रहण की गई कार्बन डाइऑक्साइड प्रश्वास क्रिया के समय बाहर निकाल दी जाती है। ऑक्सीजन ग्रहण करने तथा कार्बन-डाइऑक्साइड त्यागने के नियमित तथा मिले-जुले क्रम को रक्त का ऑक्सीजनीकरण' (Oxygenation of blood) कहते हैं।

श्वसन की कार्यिकी (Physiology of Respiration) - ऑक्सीजन ग्रहण करने तथा कार्बन-डाइऑक्साइड त्यागने की क्रिया 'श्वसन क्रिया' कहलाती है। श्वसन क्रिया की दो गतियाँ होती हैं-

1. सांस अन्दर लेना या अभिश्वसन ( Inspiration)

2. सांस बाहर छोड़ना या निःश्वसन (Expiration)।

श्वसन क्रिया में मध्य पर या महाप्राचीरा का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। यह एक गुम्बदागार पेशीय विभाजन होता है जो वक्ष तथा उदरीय गुहा में स्थित होता है। संकुचन के समय समतल होकर वक्ष का आकार बढ़ा देता है। महाप्राचीरा के संकुचन के समय ही अन्तरापाशुक पेशियाँ ( पसलियों को जोड़ने वाली वक्ष पेशियां) भी संकुचित होकर पसलियों को ऊपर उठाती है जिससे वक्षीय गुहा अधिक बड़ी हो जाती है। इस फैले हुए रिक्त स्थान को भरने के लिए श्वांस द्वारा ग्रहण की गयी वायु तेजी से फेफड़ों में भरती है और फेफड़े फूल जाते हैं। यह क्रिया अभिश्वसन' कहलाती है।

अभिश्वसन क्रिया पूर्ण होने पर निःश्वसन क्रिया प्रारम्भ हो जाती है। इस क्रिया में मध्य पर और अन्तरापार्शुक पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं जिससे वक्ष गुहा का घेरा सँकरा हो जाता है और फेफड़े सिकुड़ने लगते हैं और वायुकोषों में भरी कार्बन-डाइऑक्साइड बाहर निकल जाती है। अभिश्वसन तथा निःश्वसन दोनों क्रियाएँ मिलकर ही श्वसन क्रिया कहलाती हैं। यह श्वसन एक मिनट में 14-20 बार तक होता है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

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